अगर डॉलर गिरता है तो मुझे क्या निवेश करना चाहिए?

अगर डॉलर गिरता है तो मुझे क्या निवेश करना चाहिए?
इस समय निवेशकों को भारतीय शेयरों की ओर आकर्षित कर पाना अत्यंत कष्टïसाध्य काम बना हुआ है। इस विषय पर विस्तार से प्रकाश डाल रहे हैं आकाश प्रकाश
विकर्षण किसी भी बाजार में मंदी का अंतिम चरण होता है जब व्यक्तिगत स्तर पर निवेश करने वाले निवेशकों का किसी खास परिसंपत्ति से मोह भंग हो जाता है और वे उस विशेष परिसंपत्ति की जो भी थोड़ी बहुत हिस्सेदारी उनके पास होती है उसकी बिक्री करना आरंभ कर देते हैं। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें वक्त लग सकता है और जो बाजार प्रतिभागियों को बहुत भारी बीत सकती है। क्योंकि संबंधित परिसंपत्ति का मूल्य दिन प्रति दिन नीचे गिरता रह सकता है। ऐसे में निवेशक लगातार बिक्री करते रह सकते हैं, आखिर में जब वे मूल्यांकन को अत्यंत निचले स्तर पर ले जाते हैं तो उस खास परिसंपत्ति के लिए निचला आधार तय हो सकता है। मेरे ख्याल से देश के शेयर बाजार में घरेलू निवेशकों और मिड कैप शेयरों के लिए हम परिसपंत्ति चक्र के विकर्षण दौर में प्रवेश कर रहे हैं। हालांकि अभी तक हम वहां पहुंचे नहीं हैं लेकिन अगर चीजें इसी तरीके से घटित होती रहीं तो हम बहुत जल्दी वहां पहुंच जाएंगे।
इस वर्ष भारतीय शेयर बाजार एशिया में सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले बाजार हैं। इस अवधि में प्रमुख सूचकांक में 8 फीसदी गिरावट आई जबकि मिड कैप सूचकांक में 15 फीसदी की गिरावट है। अनेक शेयरों में तो 20 फीसदी तक की गिरावट आई। मिड कैप शेयरों में जमकर गिरावट आई और अब बिना घाटे के बाजार से बाहर निकलना लगभग नामुमकिन हो गया है। अगर भारतीय शेयर बाजार के प्रदर्शन का क्षेत्रवार आकलन किया जाए तो भी भारतीय अर्थव्यवस्था और रुपये के प्रदर्शन को लेकर उनका भय और उनकी आशंका साफ नजर आते हैं। वे लगातार भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर शंकालु नजर आते हैं।
घरेलू निवेशकों की बात की जाए तो उनमें भी शेयरों को लेकर रुचि का सख्त अभाव नजर आता है। पिछले 12 महीनों के दौरान स्थानीय निवेशकों ने भी बिकवाली ही की है। सितंबर की तेजी के बाद इसमें और गति ही आई। शेयरों की खरीद के बाद उन्हें अपने पास कुछ समय तक रखने की परंपरा मृतप्राय नजर आ रही है। बाजार में किसी भी किस्म की तेजी को बिकवाली में ही परिवर्तित होना है। खुदरा और धनाढ्य निवेशकों को भी यही नजरिया दिख रहा है कि वह तेजी सौभाग्यवश आई थी। विदेशी निवेशकों की बात की जाए तो पांच साल तक कोई प्रतिफल हासिल नहीं होने के बाद वे भारतीय बाजार से बाहर निकलने में ही भलाई समझ रहे हैं। तकरीबन 45 लाख इक्विटी पोर्टफोलियो वर्ष 2012-13 के दौरान बंद हुए। जाहिर है निवेशक बाजार से दूरी बना रहे हैं।
घरेलू निवेशक विकर्षण के चरण के करीब हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि उनको यह यकीन हो चला है कि संपत्ति, सोना तथा तयशुदा आय वाली योजनाएं निवेश के लिए शेयरों के मुकाबले बेहतर हैं। इन निवेशकों को शेयर में निवेश के लिए रिझा पाना खासा मुश्किल कर रहा है। वे किसी भी कीमत पर शेयरों की बिक्री में ही प्रसन्न नजर आ रहे हैं। वे किसी भी तरह यहां से बाहर निकलना चाहते हैं। ऐसे में जबकि पिछले पांच सालों के दौरान प्रॉपर्टी में दो अंकों में प्रतिफल हासिल हो रहा हो तो शेयरों में निवेश के लिए कोई भी दलील कमजोर नजर आनी स्वाभाविक है। आगे भी इसमें कोई कमी आने की संभावना नहीं नजर आती।
घरेलू निवेशकों का मोहभंग होने की कई वजहें हैं। सबसे पहले, बात करते हैं पांच साल की अवधि में शेयरों तथा अन्य परिसंपत्तियों के मूल्यांकन की। पांच साल लंबी अवधि के दौरान किसी परिसंपत्ति के प्रदर्शन का आकलन करने के लिए एक लंबा वक्त होता है। अब घरेलू निवेशक भी यह महसूस करने लगे हैं कि देश के विकास संबंधी कारकों को कितनी चोट पहुंची है। अब हमारे जल्दी 9 फीसदी की विकास दर पर वापस पहुंचने की संभावना नहीं है। यह कोई चक्रीय मंदी नहीं है। हां हम वर्ष 2013-14 तक 6 या 6.5 फीसदी की गति जरूर हासिल कर सकते हैं लेकिन इससे अधिक की विकास दर हासिल करना वास्तव में बड़ी चुृनौती होगी। जाहिर है इस वक्त प्रशासन, नियमन, सरकारी समन्वय आदि में आमूलचूल बदलाव की आवश्यकता है लेकिन दुर्र्भाग्यवश इसका कोई संकेत नहीं नजर आ रहा है।
ऐसा लगता है कि खराब बैलेंस शीट तथा अतीत की गलतियों के बीच अब देश के उद्योगपतियों को भी लगने लगा है कि भविष्य के लिए कोई ऊर्जा बची ही नहीं है। उनमें देश में कारोबार को लेकर उत्साह की भावना नहीं नजर आ रही है। जब हमने लगातार एक दशक तक 9 फीसदी की विकास दर की उम्मीद की थी तो उस वक्त लोगों को लगा था कि कुछ परेशानियों के बावजूद भारत में कारोबार किया जा सकता है लेकिन 5 फीसदी विकास दर के साथ तथा अनेक औद्योगिक घरानों द्वारा परियोजनाओं को स्थगित कर देने के बाद ऐसा लग रहा है कि देश में कारोबार करना आसान नहीं रह गया है।
पिछले कुछ सालों के दौरान नीतिगत कदमों की कमी, विकृत पूंजीवाद तथा लोकलुभावन कदमों को भी अप्रत्याशित माना जा रहा है। एक ओर जहां वित्त मंत्री पी चिदंबरम माहौल को बदलने के लिए भरपूर प्रयास कर रहे हैं वहीं ऐसा लग रहा है कि उनको सरकार में अपने साथियों से पर्याप्त समर्थन नहीं मिल रहा है। ऐसा लग रहा है कि सरकार में किसी को आर्थिक हालात की गंभीरता का कोई अंदाजा ही नहीं है।
ऐसा लगता है कि शेयरों से निवेशकों के मोहभंग का क्रम जारी रहेगा। स्थानीय निवेशक खासतौर पर मिडकैप शेयरों की बिक्री करेंगे क्योंकि उनका प्रदर्शन ज्यादा कमजोर है। इस तरह शेयरों की बिक्री में लगातार बढ़ोतरी ही होगी। अगर इस क्रम में बदलाव नहीं आया तो हमारे बाजार पूरी तरह विदेशी निवेशकों के रहमोकरम पर आ जाएंगे। बड़ा सवाल यह है कि अगर देश में बुनियादी ढांचा क्षेत्र के डेवलपर शेयरों से एक रुपये की आय भी नहीं अर्जित कर पाएंगे तो फिर बुनियादी ढांचा क्षेत्र के विकास के लिए 500 अरब डॉलर का निजी निवेश कहां से आएगा?
अगर हालात इतने ज्यादा खराब हैं तो विदेशी निवेशक भारत में निवेश करना क्यों जारी रखेंगे? वे भारत में ऐसा क्या देख रहे हैं जो विदेशी निवेशकों की नजर से दूर है। मेरे लिए सबसे बड़ा रहस्य यही है कि विदेशी पूंजी आखिर किस वजह से आ रही है। विदेशी निवेशकों को कैसे यह भरोसा है कि भारत इस स्थिति से उबरने में कामयाब हो जाएगा। लेकिन हमें यह बात भी ध्यान में रखनी होगी कि उनके पास असीमिति धैर्य नहीं है।
विदेशी निवेशकों के निवेश के लिहाज से देखें तो हम एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण चरण में प्रवेश करने जा रहे हैं। अगर वर्ष 2014 के आम चुनाव से पहले हमें प्रशासन और निर्णय प्रक्रिया में एक बड़ा बदलाव देखने को नहीं मिला तो विदेशी निवेशकों का धैर्य भी समाप्त हो जाएगा। हमें अपने चालू खाता घाटे की भरपाई के लिए प्रति वर्ष 75 से 100 अरब डॉलर की राशि चाहिए। इस अंतर को पाटने के लिए कोई भी यही अनुमान लगाएगा कि 25 अरब डॉलर की राशि हर वर्ष संस्थागत विदेशी निवेशकों से आएगी। अगर हम निवेश के माहौल में सुधार नहीं लाते और लंबी अवधि के लिए जरूरी बदलाव नहीं करते तो यह राशि हासिल कर पाना आसान नहीं होगा।
Rupee: गिरता रुपया भी है बड़े काम का, समझिए आपके लिए कैसे हो सकता है फायदेमंद
Rupee weakness: 2020 के शुरुआती दिनों में डॉलर की तुलना में एक्सचेंज रेट 71 रुपये के स्तर पर था. कोरोना आने के बाद यह 74-76 रुपये के स्तर तक गिर गया. रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण यह 78.50 रुपए के स्तर तक गिर गया. और अब 80 रुपए तक गिरने को मजबूर हो रहा है.
रुपये का मजबूत होना और गिरना दो देशों के बीच की बात है. कोई देश सिर्फ अपने स्तर पर न अपनी मुद्रा को मजबूत बना सकता है न कमजोर होने से बचा सकता है. दूसरे देशों का एक छोटा सा बदलाव भी आपकी मुद्रा को कमजोर या मजबूत बना सकता है. वैसे मोटे तौर पर कुछ चीजें ऐसी हैं जो मुद्रा की कमजोरी या मजबूती को प्रमुख रूप से प्रभावित करती हैं. ये हैं मुद्रास्फीति, व्याज दर में बदलाव, सार्वजनिक ऋण, मजबूत आर्थिक प्रदर्शन आदि.
रुपए में बदलाव कैसे आता है?
आपको हम बताते हैं रुपया कमजोर और मजबूत कैसे होता है. रोज सुबह जब बैंक खुलते हैं तो उनके पास बहुत सारे ग्राहक आते हैं. कुछ को विदेश यात्रा पर जाने के लिए डॉलर या कोई और मुद्रा चाहिए होती है तो कुछ को विदेश में पढ़ रहे अपने बच्चों की फीस भरने के लिए. इसी तरह किसी को विदेश में इलाज के लिए, निवेश के लिए या आयात के लिए. सरकारी कंपनियों को पेट्रोलियम, सोना, हथियार आदि खरीदने के लिए विदेशी मुद्रा की जरूरत होती है. उन लोगों को भी विदेशी मुद्रा की जरूरत होती है जिन्होंने शेयर बाजार में निवेश किया हुआ है और कुछ शेयर बेचकर पैसा अपने देश ले जाना चाहते हैं. सरकार या कंपनियों को विदेशों से लिए गए कर्ज को चुकाने के लिए भी विदेशी मुद्रा की जरूरत पड़ती है. अब सवाल ये है कि ये मुद्रा आएगी कहां से ?
विदेशी मुद्रा की आवक
कुछ मुद्रा विदेशों में काम कर रहे भारतीयों से आती है जो विदेशी मुद्रा कमाकर देश भेजते हैं. विदेशी मुद्रा विदेशी निवेशकों से भी आती है जो भारतीय बाजारों में निवेश करते हैं. कुछ मुद्रा निर्यात से आती है और कुछ मुद्रा विदेशों से लिए गए कर्ज के रूप में आती है. जो विदेशी टूरिस्ट भारत घूमने आते हैं और अपने रहने, खाने, खरीददारी पर खर्च करते हैं, उससे भी विदेशी मुद्रा आती है. जब तक इन दोनों यानी विदेशी मुद्रा के आने और विदेशी मुद्रा के बाहर जाने में सामंजस्य बना रहता है रुपया न कमजोर होता है न मजबूत. अगर कभी कभार थोड़ा इधर-उधर होता भी है तो रिजर्व बैंक बाजार में विदेशी मुद्रा खरीदकर या बेचकर स्थिति को संभाल लेता है. समस्या तब आती है जब यह संतुलन लंबे समय के लिए बिगड़ जाता है. जैसे कि अब हो रहा है.
आयात पर बढ़ा खर्च
पिछले कुछ समय से पेट्रोलियम के दाम लगातार बढ़ रहे हैं. भारत अपनी जरूरतों का 80 प्रतिशत पेट्रोलियम आयात करता है. इससे हमें ज्यादा विदेशी मुद्रा खर्च करनी पड़ रही है. आम तौर पर जब रुपया कमजोर होता है तो निर्यात बढ़ जाता है. लेकिन हम इस स्थिति का लाभ भी नहीं उठा पाए. हमारा निर्यात भी बढ़ने की बजाय कम हो गया. इस दौरान विदेशी निवेशकों ने भी भारतीय बाजारों से रुपया बड़े पैमाने पर निकाला. और जब यह संतुलन गड़बड़ाया तो रुपया कमजोर होने लगा. रूस-यूक्रेन युद्ध ने स्थिति को और बिगाड़ दिया है. जो सामान रूस और यूक्रेन से आयात होता था उनकी सप्लाई बाधित हुई है.
महंगाई पर असर
इससे वैश्विक स्तर पर महंगाई बढ़ गई है. फेडरल रिजर्व की तरफ से ब्याज दरें बढाए जाने के बाद अमेरिका में तेजी से ग्लोबल मनी पहुंचने लगी है. ऐसे में भारतीय मुद्रा का विदेशी भंडार भी तेजी से कम हुआ है. 2021 में भारत का विदेशी मुद्रा का भंडार 640 अरब डॉलर था जो अब घटकर 596 अरब डॉलर ही रह गया है.
रुपए पर राजनीति
मोदी जी ने रुपये के गिरने को जब भारत सरकार की साख और भ्रष्टाचार से जोड़ा था तो उस समय रुपया डॉलर के मुकाबले 65 रुपये था. लेकिन मोदी जी के सत्ता संभालने के बाद यह लगातार गिरता गया. जो लोग उम्मीद कर रहे थे मोदी जी की साख, ईमानदारी और सुशासन के कारण रुपया एक बार फिर से 40 रुपये प्रति डॉलर के स्तर पर जा सकता है, उन्हें झटका लगने लगा. रुपया नीचे जाने की बजाय ऊपर ही चढ़ता गया. 2020 के शुरुआती दिनों में डॉलर की तुलना में एक्सचेंज रेट 71 रुपये के स्तर पर था. कोरोना आने के बाद यह 74-76 रुपये के स्तर तक गिर गया. रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण यह 78.50 रुपए के स्तर तक गिर गया. और अब 80 रुपए तक गिरने को मजबूर हो रहा है.
इकनोमी से सीधा संबंध नहीं
हालांकि कुछ अर्थशास्त्रियों का मानना है कि रुपये के गिरने को देश की अर्थव्यवस्था के साथ जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए. वे ये भी मानते हैं कि रिजर्व बैंक को इसे रोकने के लिए डॉलर की खरीदारी जैसे कदम भी नहीं उठाने चाहिए अगर डॉलर गिरता है तो मुझे क्या निवेश करना चाहिए? क्योंकि आने वाले दिनों में कच्चे तेल के दाम काफी बढ़ सकते हैं. ऐसी स्थिति में भारत को विदेशी मुद्रा भंडार की जरूरत होगी. अगर रुपया गिरता है तो उसे गिरने देना चाहिए. यह चिंता का विषय नहीं होना चाहिए. कहीं ऐसा न हो कि रुपये को गिरने से बचाने की चक्कर में हमारी स्थिति भी पाकिस्तान और श्रीलंका जैसी हो जाए. इस समय श्रीलंका और पाकिस्तान के पास जरूरी सामानों के आयात के लिए भी विदेशी मुद्रा भंडार नहीं है.
रुपए की कमजोरी से कैसे निकलें?
ऐसे में विपक्ष के नेता राहुल गांधी की सम्यक प्रतिक्रिया और नसीहत बेहतर दिखती है. राहुल गांधी ने रुपये के कमजोर होने को लेकर मोदी जी की तरह सतही और ओछा कमेंट नहीं किया है. बल्कि इस स्थिति से निकलने का रास्ता भी सुझाया है. ठीक कोविड की तरह. राहुल गांधी ने ट्वीट करके कहा है कि मोदी जी जब रुपया गिरता था तो आप मनमोहन जी की आलोचना करते थे. अब रुपया अपने अब तक के सबसे कम मूल्य पर है. लेकिन मैं आंख मूंदकर आपकी आलोचना नहीं करूंगा. गिरता हुआ रुपया निर्यात के लिए अच्छा है. बशर्ते हम निर्यातकों को पूंजी के साथ समर्थन दें और रोजगार सृजित करने में मदद करें. हमारी अर्थव्यवस्था के प्रबंधन पर ध्यान दें न कि मीडिया की सुर्खियों पर.
मोदी जी आपदा को अवसर में बदलने में माहिर हैं. क्या वो रुपये की गिरती स्थिति का लाभ उठा पाने में सफल होंगे ?
अमेरिकी डॉलर ने अभी अपना अगला शिकार पाया है
अमेरिकी डॉलर सूचकांक फिर से आगे बढ़ रहा है और अपने हाल के उच्च स्तर पर जाने के करीब पहुंच रहा है। ऐसा लगता है कि डॉलर को मजबूत करने के लिए एक नई मुद्रा मिल गई है, और इस बार यह चीनी युआन के मुकाबले है।
2022 में डॉलर की अधिकांश मजबूती यूरो और येन के मुकाबले आई है। यूरो बनाम डॉलर का गिरता मूल्य कमजोर यूरोपीय अर्थव्यवस्था और एक यूरोपीय सेंट्रल बैंक के कारण है जो अधिक आक्रामक फेडरल रिजर्व से पिछड़ गया है। इस बीच, बैंक ऑफ जापान की दरों को कम रखने की प्रतिज्ञा ने डॉलर को येन के मुकाबले रैली करने की अनुमति दी है।
चीनी अर्थव्यवस्था के लड़खड़ाने, प्रोत्साहन के नए दौर और यहां तक कि दरों में कटौती के साथ, डॉलर युआन के मुकाबले अधिक बढ़ गया है। अप्रैल और मई के बीच युआन के मुकाबले डॉलर में मजबूती आई है, लगभग 6.35 से बढ़कर लगभग 6.75 हो गया लेकिन रुक गया।
यह सब पिछले सप्ताह में बदल गया, क्योंकि कमजोर आर्थिक डेटा और PBOC ने अपनी एक साल की दर में 10 आधार अंकों की कटौती करके 2.75% कर दिया। इससे युआन के मुकाबले डॉलर को 6.74 से 6.80 के आसपास मजबूत करने में मदद मिली। यह इस बिंदु पर एक बड़ा कदम नहीं है, लेकिन अगर चीनी अर्थव्यवस्था कमजोर रहती है और इसका केंद्रीय बैंक दरों में और कटौती करने के लिए आगे बढ़ता है, तो यह युआन के मुकाबले डॉलर को और भी मजबूत कर सकता है।
बेशक, डॉलर को युआन के मुकाबले मजबूत करना शुरू करना चाहिए, यह चीन में कारोबार करने वाली कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए एक और एफएक्स हेडविंड बना सकता है। यह संभावित रूप से इन व्यवसायों के लिए राजस्व और आय पर नकारात्मक प्रभाव अगर डॉलर गिरता है तो मुझे क्या निवेश करना चाहिए? डालेगा, संभावित रूप से उन कंपनियों पर और तनाव जोड़ देगा जो इस साल पहले ही एफएक्स हिट देख चुके हैं।
चूंकि चीन अमेरिका का सबसे महत्वपूर्ण व्यापारिक भागीदार है, इसलिए एक मजबूत डॉलर भी कई कंपनियों को बहुत लाभ पहुंचा सकता है। युआन के मुकाबले डॉलर जितना मजबूत होगा, चीन से आयात उतना ही सस्ता होगा। इससे कुछ कंपनियों को अमेरिका में मुद्रास्फीति के दबाव को दूर करने में मदद मिल सकती है।
बेशक, डॉलर सभी मुद्राओं के मुकाबले जितना मजबूत होता है, पूरे शेयर बाजार के लिए उतना ही बड़ा हिट होता है। एक मजबूत डॉलर व्यापक सूचकांक के लिए आय और बिक्री अनुमानों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करेगा। इस साल कई कंपनियों के लिए यह पहले से ही एक मुद्दा रहा है, लेकिन अगर डॉलर की मजबूती का रुझान जारी रहता है, तो हेडविंड उतना ही महत्वपूर्ण है।
फेड अभी भी कुछ समय के लिए दरें बढ़ाने की राह पर है, जबकि यूरोप और चीन की अर्थव्यवस्थाएं संघर्ष करती हैं। उस पृष्ठभूमि को देखते हुए, ऐसा लगता है कि डॉलर कॉर्पोरेट आय और शेयर बाजारों के लिए निकट भविष्य में एक हेडविंड बना रहेगा, भले ही यह यूरो और येन के मुकाबले क्षणिक रूप से रुक गया हो।
अभी के लिए, डॉलर पर नजर रखने की जरूरत है, क्योंकि यह बाजारों को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करेगा।
अस्वीकरण: ब्लूमबर्ग फाइनेंस एलपी की अनुमति से उपयोग किए गए चार्ट। इस रिपोर्ट में केवल सूचनात्मक और शैक्षिक उद्देश्यों के लिए उपयोग की जाने वाली स्वतंत्र टिप्पणी है। माइकल क्रेमर मॉट कैपिटल मैनेजमेंट के साथ एक सदस्य और निवेश सलाहकार प्रतिनिधि हैं। मिस्टर क्रेमर इस कंपनी से संबद्ध नहीं हैं और इस स्टॉक को जारी करने वाली किसी भी संबंधित कंपनी के बोर्ड में काम नहीं करते हैं। इस विश्लेषण या बाजार रिपोर्ट में माइकल क्रेमर द्वारा प्रस्तुत सभी राय और विश्लेषण पूरी तरह से माइकल क्रेमर के विचार हैं। पाठकों को माइकल क्रेमर द्वारा व्यक्त की गई किसी भी राय, दृष्टिकोण या भविष्यवाणी को किसी विशेष सुरक्षा को खरीदने या बेचने या किसी विशेष रणनीति का पालन करने के लिए एक विशिष्ट आग्रह या सिफारिश के रूप में नहीं मानना चाहिए। माइकल क्रेमर के विश्लेषण सूचना और स्वतंत्र शोध पर आधारित हैं जिसे वह विश्वसनीय मानते हैं, लेकिन न तो माइकल क्रेमर और न ही मॉट कैपिटल मैनेजमेंट इसकी पूर्णता या सटीकता की गारंटी देता है, और इस पर इस तरह भरोसा नहीं किया जाना चाहिए। माइकल क्रेमर अपने विश्लेषणों में प्रस्तुत किसी भी जानकारी को अद्यतन या सही करने के लिए बाध्य नहीं है। श्री क्रेमर के बयान, मार्गदर्शन और राय बिना किसी सूचना के परिवर्तन के अधीन हैं। पूर्व प्रदर्शन भविष्य के परिणाम का संकेत नहीं है। न तो माइकल क्रेमर और न ही मॉट कैपिटल मैनेजमेंट किसी विशिष्ट परिणाम या लाभ की गारंटी देता है। इस विश्लेषण में प्रस्तुत किसी भी रणनीति या निवेश कमेंट्री का पालन करने में आपको नुकसान के वास्तविक जोखिम के बारे में पता होना चाहिए। चर्चा की गई रणनीतियां या निवेश मूल्य या मूल्य में उतार-चढ़ाव कर सकते हैं। इस विश्लेषण में उल्लिखित निवेश या रणनीतियाँ आपके लिए उपयुक्त नहीं हो सकती हैं। यह सामग्री आपके विशेष निवेश उद्देश्यों, वित्तीय स्थिति या जरूरतों पर विचार नहीं करती है और यह आपके लिए उपयुक्त अनुशंसा के रूप में अभिप्रेत नहीं है। आपको इस विश्लेषण में निवेश या रणनीतियों के संबंध में एक स्वतंत्र निर्णय लेना चाहिए। अनुरोध पर, सलाहकार पिछले बारह महीनों के दौरान की गई सभी सिफारिशों की एक सूची प्रदान करेगा। इस विश्लेषण में जानकारी पर कार्रवाई करने से पहले, आपको यह विचार करना चाहिए कि क्या यह आपकी परिस्थितियों के लिए उपयुक्त है और किसी भी निवेश की उपयुक्तता का निर्धारण करने के लिए अपने स्वयं के वित्तीय या निवेश सलाहकार से सलाह लेने पर दृढ़ता से विचार करना चाहिए।
जोखिम से सुरक्षा के लिए लगाए सोने पर दांव
निवेशक इस उलझन में रहते हैं कि उन्हें सोने में निवेश करना चाहिए या नहीं.
जोखिम से सुरक्षा के लिए लगाए सोने पर दांव
क्या मुझे इस स्तर पर निवेश करना चाहिए?
छोटे निवेशकों की यह सबसे बड़ी चिंता है। सोने के भाव इस स्तर से नीचे आएंगे इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता। एंजेल स्टॉक ब्रोकिंग्स एसोसिएट के डायरेक्टर (कमोडिटी और करेंसी) नवीन माथुर ने कहा, 'अभी गोल्ड बहुत ऊंचे स्तर पर कारोबार कर रहा है ऐसे में हम इसमें गिरावट के गवाह बन सकते हैं। ऐसा पहले भी हो चुका है।' वे निकट अवधि में प्रॉफिट बुकिंग भी कर सकते हैं। इनवेस्टमेंट एनालिस्ट शेषादी भर्तन ने कहा, 'निकट भविष्य में सोने में गिरावट आएगी।
निवेशकों को 26 हजार के स्तर से नीचे खरीदारी करना चाहिए।' 25 अगस्त को सोने की कीमतों में 6 फीसदी की गिरावट आई थी, जो पिछले कुछ सालों में एक दिन की सबसे बड़ी गिरावट है। दिल्ली की हॉलमार्क जूलर कंपनी राघव ज्वैलर्स के सुरेंदर चांडक ने कहा, 'हमारी बिक्री में कमी आई है। लोगों की खरीदारी की क्षमता कम हुई है ऐसे में उन्होंने नई खरीदारी करना बंद कर दिया है।'
मुझे कितना निवेश करना चाहिए?
मुद्रास्फीति के खिलाफ सोने को सबसे बेहतर संपत्ति माना जाता है। आमतौर पर किसी व्यक्ति को अपने कुल निवेश का 10 से 15 फीसदी सोने में निवेश करना चाहिए। यदि वह इतना निवेश नहीं कर पा रहा है तो चरणबद्ध तरीके से सोने में निवेश बढ़ाना चाहिए। निवेशकों की सुविधा और उपलब्ध विकल्पों के आधार पर यह निवेश कई तरह से किया जा सकता है।
मुझे कैसे निवेश करना चाहिए?
यदि कोई व्यक्ति सोने में निवेश करने का फैसला करता है तो अगला सवाल यह होता है कि वह एकमुश्त रकम निवेश करें या चरणबद्ध तरीके से। माथुर ने कहा, 'इस स्तर पर सोने में एकमुश्त रकम निवेश करना समझदारी नहीं होगी।' अगर निवेशक एकमुश्त रकम निवेश करता है तो अनिश्चितता भरे मौजूदा हालात में सोने के दाम गिरने पर निवेशक की पूरी पूंजी डूब जाएगी। इस वक्त निवेशक को चरणबद्ध तरीके से निवेश करना चाहिए। इससे न सिर्फ जोखिम कम होगा बल्कि रुपए और डॉलर की लागत की एवरेजिंग से भी मुनाफा कमाया जा सकता है। यह म्यूचुअल फंड में एसआईपी के अगर डॉलर गिरता है तो मुझे क्या निवेश करना चाहिए? जैसा होगा।
भर्तन ने कहा, 'सोने की कीमतों में बढ़ोतरी घरेलू मांग को नहीं बल्कि वैश्विक अनिश्चितता को दर्शाता है। निवेशक डॉलर हेजिंग के बजाय अब गोल्ड हेजिंग अपना रहे हैं। खासतौर पर एसएंडपी द्वारा अमेरिकी क्रेडिट रेटिंग में गिरावट के बाद ऐसा रुझान नजर आ रहा है।' अनिश्चित माहौल में चरणबद्ध तरीके से निवेश करना सबसे ज्यादा सही है ताकि गिरावट में भारी नुकसान से बचा जा सके।
किस रूप में मुझे निवेश करना चाहिए?
निवेशकों के पास यह विकल्प है कि वे ज्वैलरी, बार और सिक्कों के रूप में फिजिकल फॉर्म में सोना खरीदें या पेपर या डीमैट फॉर्म के जरिए सोने में पैसा लगाएं। पेपर या डीमैट फॉर्म में पेपर कॉन्ट्रैक्ट्स, गोल्ड एक्सचेंज ट्रेडेट फंड्स (ईटीएफ), गोल्ड म्यूचुअल फंड, ई-गोल्ड यहां तक कि सोना खनन करने वाली कंपनियों के शेयर भी खरीद सकते हैं। कई लोग जिन्होंने बहुत निचले स्तर पर सोने में निवेश किया है मुमकिन है उन्हें फिजिकल गोल्ड में निवेश करने का आइडिया रास नहीं आएगा। इसलिए वे पेपर फार्म में निवेश कर सकते हैं और इसकी शुरुआत छोटे स्तर के निवेश से कर सकते हैं।
रीटेलरों, थोक विक्रेता या बैंकों में उपलब्ध सोने की गुणवत्ता अलग-अलग होती है। फिजिकल फॉर्म में सोने की खरीदारी किसी सर्टिफाइड हॉलमार्क ज्वैलरों या रीटेलरों से खरीदना बेहतर होता है ताकि उनकी शुद्धता पक्की रहे। इसके साथ ही यह भी सुनिश्चित होता है कि आप सही गुणवत्ता वाली चीज के लिए सही कीमत चुका रहे हैं। वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के मुताबिक 2010 में भारत में सोने की कुल मांग में 75 फीसदी हिस्सेदारी गोल्ड ज्वैलरी की है।
फिजिकल फॉर्म में सोने में निवेश करने की खासियत यह है कि इसकी लिक्विडिटी ज्यादा है यानी आप इसे कभी भी भुना सकते हैं। इसके अलावा गोल्ड बार या सिक्कों के मामले में मेकिंग चार्ज भी बहुत कम होता है। सिक्कों के मामले में न्यूमिसमैटिक वैल्यू होती है और आपके पास असल बहुमूल्य धातु होने का सुख भी होता है। हालांकि, इसमें सुरक्षा से जुड़े मामले इसमें नकारात्मक भूमिका निभाते हैं। फिजिकल फॉर्म में होने की वजह से इनके खोने या गैर हॉलमार्क गहनों के अशुद्ध होने का खतरा भी रहता है।
अभी पेपर या डीमैट फॉर्म में सोने का निवेश लोकप्रिय हो रहा है, क्योंकि इस माध्यम से निवेश करने में निवेशकों को कोई समस्या नहीं आती है। इसके साथ ही इस पर वेल्थ टैक्स नहीं भी लगता। भारत में पहले ही गोल्ड ईटीएफ में निवेश 15 टन को पार कर चुका है। उम्मीद है कि एक साल में यह दोगुना हो जाएगा। फिलहाल बाजार में 12 एएमसी गोल्ड ईटीएफ की सुविधा दे रहे हैं।
माथुर ने कहा, 'अगर कोई ईटीएफ का रास्ता चुनता है तो वह हर महीने या हर हफ्ते सोने में निवेश कर सकता है।' गोल्ड एमएफ की खासियत यह है कि इसके लिए डीमैट एकाउंट की जरूरत नहीं होती है। हालांकि, ईटीएफ की तुलना में गोल्ड एमएफ की रेकरिंग और सौदे की लागत ज्यादा है।
ई गोल्ड एक अन्य विकल्प है, जिसकी सुविधा नेशनल स्पॉट एक्सचेंज देता है। इसमें निवेशक सोने में निवेश कर सकता है और डीमैट फॉर्म में संभाल कर रख सकता है। ई-गोल्ड यूनिट को किसी भी समय सोने के सिक्कों या बार में बदला जा सकता है।
दुनिया भर में वित्तीय और आथिर्क संकटों के मद्देनजर केंद्रीय बैंक लगातार अपना गोल्ड रिजर्व बढ़ा रहा है। घरेलू और रीटेल निवेशक उनसे संकेत ले सकते हैं। वे अपनी बचत का एक छोटा हिस्सा गोल्ड में निवेश कर सकते हैं, ताकि पोर्टफोलियो का डायवर्सिफिकेशन के साथ महंगाई के खिलाफ हेजिंग हो सके। निवेशकों को चरणबद्ध तरीके से सोने में निवेश करना चाहिए।